अमे उज्जड वगडो,
तमे मीठो टहुको..
अमे बंध ओरडो,
तमे भीनो तडको..
अमे कडवो लीमडो,
तमे रस छो मधुरो..
अमे एकडो-बगडो,
तमे प्रेम छो तगडो.. (१)
अमने तमारूं वळगाण,
तमे संयमनुं छो गळपण,
धबकार बनीने भीतरे धबको…
ब्रह्म तेजथी निर्मळ काया,
नहीं मोह-मदन के माया,
दर्शनना आनंदथी आंखो छलको…
अमे उज्जड वगडो… (२)
शोभा शासननी छे संघस्थविरजी,
सिद्धि सूरीश्वरजी दादा बापजी…. (३)
अमे जंगली गांडो बावळ,
तमे कोमळ मघमघ अत्तर,
अम मस्तके राखो,
करुणानुं छत्तर…
तमे संयमी घाट घडजो,
अमे साव नकामा पत्थर,
अमे पागल प्रेमी,
प्रीत अभारी नक्कर…
अमे उज्जड वगडो….
गुरुमैयानो जय जयकार… (४)