चन्द्रप्रभजी! मारुं साचवोने मन…
(रखडावे ए मुजने) जन्मोजनम,
चन्द्रप्रभजी! मारूं साचवोने मन….(१)
मोहनो राहु रोज आतमने ढांके,
खीलतां गुणो पर कलिमां नांखे,
(दूर करो तो रोज) शरदपूनम,
चन्द्रप्रभजी! मारूं साचवोने मन….(२)
परदोषोना नित कचरा भरे छे,
आतमने मारा मेलो करे छे,
(मनथी मलिन ने) चोक्खो आतम,
चन्द्रप्रभजी! मारुं साचवोने मन…(३)
संस्कारो अनादि काळना रमे छे,
क्रोध-मान-माया-लोभ करवा गमे छे,
(सहजमळनुं हवे), करावो वमन,
चन्द्रप्रभजी! मारुं साचवोने मन…(४)
मनना पिंजरथी आतम छूठे जो,
भीतरथी ए समरस फूठे तो,
(निजगुणोनुं तो) करूं आचमन,
चन्द्रप्रभजी! मारुं साचवोने मन…(५)
चंद्रने तरंग साथे सीधो संबंध,
चंद्रना स्वामी करजो मननो प्रबंध,
(हंस धरे चरणे) मन सुमन,
चन्द्रप्रभजी! मारुं साचवोने मन…(६)