श्री चोवीस तीर्थंकर भगवान की स्तुतियाँ | Shree Chovis Tirthankar Bhagwan ki Stuti

श्री चोवीस तीर्थंकर भगवान की स्तुतियाँ | Shree Chovis Tirthankar Bhagwan ki Stuti

 श्री चोवीस तीर्थंकर भगवान की स्तुतियाँ

(राग . ते पंखीनी उपर पथरो फेंकतां फेकी दीधो)

जेणे कीधी सकल जनता नीति जानकारी
त्यागी राज्यादिक विभवने जे थया मौनधारी
व्हेतो कीधो सुगम सघलो मोक्ष मार्ग जेणे
वंदुं हुं ते ऋषभजिनने धर्म धारी प्रभुने. १

देखी मूर्ति अजितजिननी नेत्र मारां ठरे छे.
ने हैयुं आ फरी फरी प्रभु ध्यान तारुं धरे छे.
आत्मा मारो प्रभु तुज कने आववा उल्लसे छे.
आपो एवं बाल हृदय माँ माहरी आश ए छे. २

जे शांतिना सुख सदनमां मुक्तिमां नृत्य राजे,
जेनी वाणी भविक जनना चित्तमां नित्य गाजे,
देवेन्द्रोनी प्रणय भरती भक्ति जेने ज छाजे,

वंदुं ते संभवजिन तणा पादपद्मो हुं आजे. ३
चोथा आरा रुप नभ विषे देवता सूर्य जेवा,
घाती कर्मो रुप मृग विषे केसरी सिंह जेवा,
साचे भावे भविक जनने आपता मोक्ष मेवा,
चोथा स्वामी चरण युगले हुं चाहुं नित्य रे’वा. ४

आ संसारे भ्रमण करता शांति माटे जिनेन्द्र,
देवो सेव्या कुमति वशथी में बहु हे मुनिन्द्र !
तोये नाव्यो भव भ्रमणथी छूटकारो लगारे,
शान्ति दाता सुमतिजिनजी देव छे तुं ज मारे. ५

सोना केरी सुर विरचिता पद्मनी पंक्ति सारी,
पद्मो जेवा प्रभु चरणना संगथी दीप्ति धारी,
देखी भव्यो अति उलटथी हर्षनां आंसु लावे,
ते श्री पद्मप्रभ चरणमां हुं नमुं पूर्ण भावे. ६

आखी पृथ्वी सुखमय बनी आपना जन्म काले,
भव्यो पूजे भय रहित थइ आपने पूर्ण व्हाले,
पामे मुक्ति भव भय थकी जे स्मरे नित्यमेव,
नित्ये वंदुं तुम चरणमां श्री सुपार्श्वेष्ट देव. ७

जेवी रीते शशिकिरण थी चंद्रकांत द्रवे छे.
तेवी रीते कठिन हृदये हर्षनो धोध वहे छे.
देखी मूर्ति अमृत झरती मुक्तिदाता हमारी,
प्रीते चंद्रप्रभजिन मने आप जो सेव सारी. ८

सेवा माटे सुर-नगरथी देवनो संघ आवे,
भक्ति भावे सुरगिरिपरे स्नात्र पूजा रचावे,
नाट्यारंभी नमन करीने पूर्ण आनंद पावे,
सेवा सारी सुविधिजिननी कोणने चित्ते नावे ! ९

आधि व्याधि प्रमुख बहु ए तापथी तप्त प्राणी,
शेळी छाया शीतलजिननी जाणीने हर्ष आणी,
नित्ये सेवे मन वचनने कायाथी पूर्ण भावे,
कापी अंते दुरितगणने पूर्ण आनंद पावे. १०

जे हेतु विण विश्वनां दुःख हरे, न्हाया विना निर्मळा,
जीते अंतर शत्रुना स्वबलथी, द्वेषादिथी वेगला
वाणी मधुरी वदे भवहरी गंभीर अर्थ भरी.
ते श्रेयांस जिणंदना चरणनी चाहुं सदा चाकरी. ११

जे भेदाय न चक्रथी, न असिथी, के इन्द्रना वज्रथी
एवां गाड कुकर्म ते जिनपते ! छेदाय छे आपथी
जे शांति नव थाय चंदन थकी, ते शांति आपो मने,
वासुपूज्य जिनेश हूं प्रणय थी, नित्य नमो आपने. १२

जेवी रीते विमल जलथी वस्त्रनो मेल जाय,
तेवी रीते विमलजिनना ध्यानथी नष्ट थाये,
पापो जूनां बहु भवतणां अज्ञताथी करेलां,
ते माटे हे जिन ! तुज पदे पंडितो छ नमेला. १३

जिओ मुक्तिनगर वसता काल सादि अनंत,
भावे ध्यावे अविचलपणे जेहने साधु-संत,
जेनी सेवा सुरमणि परे सौख्य आपे अनंत,
नित्ये मारा हृदयकमले आवजो श्री अनंत. १४

संसारांभोनिधि जण विषे बूडतो हुं जिनेन्द्र,
तारो सारो सुखकर भलो धर्म पाम्यो मुनीन्द्र,
लाखो यत्नो यदि जन करे तो’ या तो छोड़,
नित्ये धर्मप्रभु तुज कने भक्तिथी हाथ जोडुं. १५

जाण्यां जाये शिशु निकलना लक्षण पारणाथी,
शांति कीधी पण प्रभु तमें माताना गर्ममांथी,
षटखंडोने नवनिधि तथा चौद रत्नो त्यजीने,
पाम्या छो जे परमपदने आपजो ते अमोने. १६

जेहनी मूर्ति अमृत झरती धर्मनो बोध आपे,
जाणे मीठे वचन वदती शोक संताप कापे,
जेहनी सेवा प्रणय भरथी सर्व देवो करे छे,
ते श्री कुंथुजिन चरणमां चित्त मारां ठरे छे. १७

जे दुःखोना विषम गिरिओ वजनी जेम भेदे,
भव्यात्मानी निबिड जडता सूर्यनी जेम छेदे,
जेनी पासे तृण सम गणे स्वर्गने इन्द्र जेवा,
एवी सारी अरजिन मने आपजो आप सेवा. १८

तारा मित्र अति रुपवती स्वर्णनी पूतलीथी,
एवी वस्तु प्रभु तुज नथी बोध ना थाय जेथी
सच्चारित्रे जन मन हरी बालाजी ब्रह्मचारी,
नित्य मल्लि जिनपति मने आपजो सेव सारी. १९

अज्ञाननो विनाश करवा, जे सूर्य जेवा कहां,
जेणे अष्ट प्रकारनां कठिन जे, कर्मो बधां ते दह्या.
जेनी आत्मस्वभावमां रमणता, जे मुक्तिदाता सदा,
एवा श्री मुनिसुव्रत नमीए, जेथी टले आपदा. २०

वैरिवृंद नम्यो प्रभु जनकने, गर्भ प्रभावे करी,
कीर्तिचंद्र करोज्ज्वलादशदिशि, आ विश्वमाता विस्तार.
आपी बोध अपूर्व आ जगतने, पाम्या प्रभु शर्मने,
पुण्ये श्री नमिनाथ आप चरणे, पाम्यो खरा धर्म. २१

लोभावे ललना तणा ललित शुं, त्रिलोकना नाथने,
कंपावे गिरि भेदी वायु लहरी, शुं स्वर्णना शैलने,
शुं स्वार्थे जिनदेव ए पशु तणा, पोकार ना सांभले,
श्रीमन्नेमिजिनेन्द्र सेवन थकी, शुं शुं जगे ना मले. २२

धूणीमां बलतो दयानिधि तमे, ज्ञान करी सर्पने,
जाणी सर्व जनो समक्ष क्षणमां, आपी महामंत्रने,
कीधो श्री धरणेन्द्रने भव थकी तार्या घणा भव्यने
आपो पार्श्व जिनेन्द्र नाशरहिता, सेवा तमारी मने. २३

श्री सिद्धार्थ नरेन्द्रना कुल नभे, भानु समा छो विभु,
म्हारा चित्तचकोरने जिन तमे, छो पूर्ण चंद्र प्रभु
पाम्यो छु पशुता त्यजी सुरपणुं, हुँ अपना धर्म था,
रक्षो श्री महावीर देव मुजने, पापी महा कर्मथी. २४

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