Diva O Pragtya Chhe (Hindi)

Diva O Pragtya Chhe (Hindi)

दिवाओ प्रगट्या छे, जे वीरनां विचारे, 

ए सतत रहेशे मारा, स्मरणमां…

 दिवानो रे थयो छे, आतम निकल्यो छे, 

ए पतित जवानो परमना, गगनगां…(१)

 

कईक जन्मोथी, भटकी रहीती, हवे जड्यो 

किनारो ज्यां, सुखनी प्रचिती, धुमाडो ना

 रह्योने, मारी ए आंखोने, ए शाश्वत सुखना,

 गम्या छे अजवाळा…(२)

 

दुनीयाना रंगोनो बहु शोख ने, भोगीओनी

 साथे हती मोज रे, घर करता

 बाहर तो मननं रमण, मनगमता 

साधन तो जुबे रोज रे, लागी रे

 मने सद्गुरुनी, शुभकृपाथी सत्संगनी लगन, 

आवी रे हवे आ प्रभुना, शरणमां, 

ने थई गयी हुं मगन, कईक जन्मोथी…(३)

 

बुनियादी तत्वोनो आ धर्म छे, योगीओनु 

माथे शिरछत्र छे, परठवता दोषो ने 

मनना भरम, मनधरतां जिनवचनो हररोज रे,

 पामीश हुं ए जिंदगानी, वीरवचननी 

प्रभु तारा लीधे, जागी छे मने एक

 तमन्ना, रही वफादार पाळुं विरतिने, 

कईक जन्मोथी…(४)

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