एवा छे मारा गुरु… एवा छे प्यारा गुरु…..
गुरु तारुं शरणु छे साचुं,
गुरु तारा चरणे हुं राचुं,
तरस्यानुं झरणुं छे साचुं,
ज्ञाननुं अमृत हुं याचुं,
भावे तुजने पामीने हुं,
मारा सघळा कर्मो चुरूं,
जीवनने बनावे मधुरुं,
एवा छे मारा गुरु,
जेनाथी हुं भवने तरूं,
एवा छे प्यारा गुरु,
हो एवा छे मारा गुरु…(१)
आवे छे अंतरायो एवा,
माहरा जीवनमां केवा,
पळवारमां ए दूरे थातां,
चारखी गुरुवाणीना मेवा,
आराधना ने साधनानी,
सरगम रेलावे जे मीठी,
प्रभुना जेवी गुरुमाँ ने,
अहोभावथी में दिठी,
परमनी रुची प्रगटावी,
मारूं सपनुं करावे पुरुं,
जीवनने बनावे मधुरुं,
एवा छे मारा गुरु….
जेनाथी हुं भवने तरूं,
एवा छे मारा गुरु…(२)
आतमने अजरामर थावानो,
मारग बतावे साचो,
केवल मुक्तिना ध्रुवनाराथी,
मारे जे मोहने तमाचो,
निर्मळ विमल बनवा काजे,
देशना प्रभुनी सुणुं,
मुज आत्मने विसोही करी,
सर्व समर्पण हुं करूं,
अर्हममां “अंकित” थावानी,
करावे जे यात्रा शुरु,
जीवनने बनावे मधुरुं,
एवा छे मारा गुरु….
जेनाथी हुं भवने तरूं,
एवा छे मारा गुरु…(३)