गंगा किनारे शोभता,
अद्भुत तीरथ बे ।
जियागंज ने अजिमगंज,
वात सुणो कहुं ते ॥
आवो आजे तमने
बे-बे तीरथो बतावुं,
एनी जाहोजलालीनी
एक कथा सुणावुं… (१)
आजे तो ए भूमिए नवा
शणगार सज्या छे,
छ-छ जिनमंदिरना
जीर्णोद्धार थया छे,
तीर्थो जुहारी अढळक
पुण्य कमाववा आवोने…
अजिमगंज बोलावे छे तमे आवोने,
भक्ति रसमां भींजावाने आवोने….
जियागंज बोलावे छे तमे आवोने,
भक्ति रसमां भींजावाने आवोने… (२)
खळ-खळ वहेती गंगानदीना
से कांठे जे सोहे,
अजिगंज जियागंज तो
सहुना मनडा मोहे
शाही राजवी परिवारोनी नगरी
जोवा आवोने… (३)
ऊंची-ऊंची हवेलियों
ने रजवाड़ाओ मोठा,
स्वर्ग समी आ देवभूमिमां
देवोय पडता भोंठा,
बाबुओनी अद्भुत भक्तिने
माणवा आवोने… (४)
अमूल्य रत्नोंनी प्रतिमाओं
मंदिरमां बिराजें,
एक-एक जिन मंदिर
आपणी आंखों आंजे,
प्राचीनता – अर्वाचीनतानो
संगम जोवा आवोने… (५)
जीर्णोद्धारना ज्योतिर्धारी
मुक्तिप्रभसूरि राजा,
पुण्यवंत साम्राज्ये वागे
पगले-पगले वाजा,
थोडी क्षणों परमात्मा
साथे वीताववा आवोने… (६)