गिरनारवासी, मुक्ति विलासी,
हुं चाहुं, तारो प्रेम…
ओ नेम… ओ नेम…
हूं तो संभाळु, तुं जो विसारे, (1)
नभशे आ प्रीति केम…
ओ नेम… ओ नेम…
पशु ना पोकारो, हृदय मां धारो, (2)
मुज वेला आवुं केम…
ओ नेम… ओ नेम…
राजुल नारी, करुणा थी तारी, (3)
मूज पर करशो ने रहेम…
ओ नेम… ओ नेम…
टाळो ने विभावो, आपो नीज भावो, (4)
बने आतम साचो हेम…
ओ नेम… ओ नेम…
ओ रखवैया, प्यारी मुज मैया, (5)
करजो मुज योगक्षेम…
ओ नेम… ओ नेम…