” गुरु अमृत है जगत में,
बाकी सब विषमैल,
सद्गुरू उपकारी है,
प्रभु से करावे मेल”
गुंजे दशे दिशाओ आज,
गुरु भक्तोनो अवाज,
आवो आंगणे शिरताज,
व्हाला निपुणरत्न महाराज…(१)
राजनगर आज राजी थयुं छे,
सद्वाए चातुर्मास मळ्युं छे,
राज करशे भक्तोना राजा,
चारित्र आचरण, तत्व ताजा,
धन-कचंनने सर्व समर्पण,
आतम पुष्प चरणे अर्पण,
जयंत गुरुनुं साक्षात दर्पण…
मारा राज निपुण राज,
महाराज पधार्या…
वीरना नंदन आव्या..
वैराग्य लेहेर लाव्या..(२)
निपुण आपे भव विश्राम,
निपुण करावे भव विराम,
निपुण तोड़े भव अविराम,
निपुण नाम छे मुक्ति धाम,
मुज शबरीनो ऐ छे राम,
मुज मीरानो ऐ छे श्याम,
मोह राज पण ज्यां गुलाम,
निपुण चरणोमां प्रणाम…(३)
वीरना अवधूत कहातां,
गौतम सम विनय धरावतां,
राजेन्द्रनी राहे चालता,
जयंतनी प्रतिकृति लागतां,
नित्यना प्रिय साधु कहातां,
जयरत्नना रतन शोभतां,
आयुष्यभर निपुण पद याचतां…
मारा राज निपुण राज,
महाराज पधार्या…
वीरना नंदन आव्या..
वैराग्य लेहेर लाव्या..(४)
पधारो आंगणिये मारा,
व्हाला निपुणरत्न महाराज…
पधारो आंगणिये प्यारा,
व्हाला निपुणरत्न महाराज…(५)