हृदय की सरगम कहती है हरदम,
खुशियों को पाने की ये दिशा है,
जाना है पथ पर दिखाएँ गुरुवर,
निर्मल चरण की ये निशां है…(१)
जागी दिल में भव की व्यथा ये,
संयमपथ की सुंदर प्रथा ये…
है जिनआगम की आँखों में,
सुविहित गुरुकुल की शाखो
में है ये प्रथा…(२)
सदियों से सदा चले श्रमणों जहाँ,
परम की संपदा को
पाने की है यही प्रथा…(३)
मन मोर मेरा कलशोर करे,
विरती की गाथा गाएँ,
सब संग तजे, महावीर भजे,
समभाव का शंख बजाएँ,
अब तक जिसे मैं मानता,
वो सुख ही था कहाँ?
संयम से ही मिले है,
सच्चे सुख का ये जहाँ….(४)