जयन्त जस यात्रा,
चालो जयन्त जस यात्रा,
पेपराल से चलकर जाये,
भाण्डवपुर की घरा….(१)
पुकारा जब हमने,
गुरु चले आये थे,
जीवन में सद् गुणो के,
पाठ सिखलाये थे,
गुरु है सहारा हम भक्तों का,
गुरु ही है आसरा…
पेपराल से चलकर…(२)
धरा वो धन्य हुई,
जहां पर जन्म है पाया,
रुकी जहां सांस आपकी,
तीर्थ वो सबके मन भाया,
इस मिट्टीने मिठा दिया है,
जीवन का अंधियारा….
पेपराल से चलकर…(३)
तीर्थ यात्रा के बहाने,
मिलना है प्यारे मधुकर से,
जयन्त गुरु प्राण हमारे,
किया है प्रेम गुरुवर से,
“निपुण” गुरु की यशोगाथा को,
लिखता जग सारा….
निपुण गुरु के यश का डंका,
गूंज रहा प्यारा…
पेपराल से चलकर…(४)