जे विचरे रह्या छे विरतिमां,
ने आतम केरी प्रगतिमां,
ना रंगरागनी आसक्तिमां,
निशदिन रहे विरक्तिमां,
ए श्रमण वृंदोनी संगे,
विहार सेवा करवी छे…
मारे विहार सेवा करवी छे..
मारे श्रमण सेवा करवी छे… (१)
छे पंचम काळनी वस्तीमां,
जे पंचम पढ्नी मस्तिमां,
जे गामे-गामे विचरी रह्या,
ए परम तणी मनमस्तीमां,
ए साचो मारग बतावनारा,
श्रमणोनी सेवा करवी छे…
मारे विहार सेवा करवी छे..
मारे श्रमण सेवा करवी छे…(२)
भले ठंडी हो के गरमी हो,
मारे विहार यात्रा करवी छे,
ने धवल वेषना अजवाळे,
आ निर्दोष यात्रा करवी छे,
महायोगनो बोध देनारा,
श्रमणोनी सेवा करवी छे…
मारे विहार सेवा करवी छे..
मारे श्रमण सेवा करवी छे… (३)
(धून)
नयसारने महावीर बनावे,
ए श्रमण सेवा करवी छे…
आतममां समकित प्रगटावे,
ए विहार सेवा करवी छे…
भवयात्रा निस्तार करावे,
ए श्रमण सेवा करवी छे…
अक्षय पद “अंकित” करावे,
ए विहार सेवा करवी छे…
मारे विहार सेवा करवी छे…
मारे श्रमण सेवा करवी छे….