ज़िंदगी के चंद लम्हे,
आपके चरणों में रख दूं,
आप हंस कर माफ कर दे,
और कुछ ना चाहिए…
मैं नहीं ज्ञानी, न धर्मि,
ना तो मैं हुं कर्मयोगी,
आप सर पर हाथ रख दे,
और कुछ ना चाहिए…(१)
मैं नहीं कहता की मैंने,
कोई गलती की नहीं है,
हां! मगर ये बात मैंने,
युं छुपाई भी नहीं है,
मेरे मन को साफ कर दे,
और कुछ ना चाहिए…(२)
मैंने दुनिया को पुकारा,
कोई ना मुझको पुकारे,
अब शरण में आपकी हूं,
आप किरपा से निहारे,
आप मन की बात पढ ले,
और कुछ ना चाहिए…(३)
मैं बयां नहीं कर भी सकता,
अपने मन की भावना,
आप मन को युं संवारे,
है यही बस चाहना,
मेरे मन को खास कर दे,
और कुछ ना चाहिए…(४)