क्यारे प्रभु सम्यक्त्वनी,
ज्योति हृदयमां थीर थशे,
क्यारे प्रभु वैराग्य वासित,
म्हारी हरपल थशे,
क्यारे प्रभु सुविसुद्ध भावे,
सर्वविरती स्पर्षशे,
क्यारे प्रभु संसारमां पण,
मुक्तिनी झांखी थशे…(१)
विषयो तनां वळगाडने,
क्यारे प्रभु छोडीश हुं,
जिनआणने जिननबिंबमां,
मुजमां कदा जोडीश हुं,
अणगारनां वस्त्रों सजी,
कर्मो कदा तोडीश हुं,
मुक्ति नगरनां मार्ग पर,
क्यारे प्रभु दोडीश हुं…(२)
भवितव्यता कर्मो स्वभाव,
निखार हो विपरीत भले,
ने मुक्ति माठे माहरो,
पुरुषार्थ हो नबळो भले,
तुज भक्तिने अनुकूल थाय,
ए बधा तुज दास छे,
तुं मुख्य हेतु मोक्षनुं,
मुजने सभर विश्वास छे…..(३)
ने प्रीत पुद्गलथी करी,
तेथी भम्यो संसारमां,
जो प्रीत तुज संगे करूं,
तो मुक्ति पण पलवारमां,
तारो अचिंत्य प्रभाव जाणी,
प्रीत करतो हुं तने,
जो कर्मवश भूलूं तने,
तो पण समरजे तुं मने…(४)
प्रियतम तमे मारा प्रभु,
निशदिन तमोने झंखतो,
तारा विरहनी वेदनामां,
रात-दिन हुं झुरतो,
तारा मिलननी प्यासमां,
निज देहने पण भूलतो,
जे आश के मळशो तमे,
तेथी तने नित समरतो…(५)