क्युं न भये हम मोर विमलगिरि…
( राग : पार्श्व चिंतामणि मेरो…/जिन तेरे…)
क्युं न भये हम मोर विमलगिरि क्युं न भये हम मोर…
सिद्धवड रायण रूख की शाखा, झुलत करत झकोर… ॥१॥
आवत संघ रचावत अंगिआ, गावत गुण घमघोर… ॥२॥
हम भी छत्र कला करी निरखत, कटने कर्म कठोर… ॥३॥
मूरत देख सदा मन हरखे, जैसे चंद्र चकोर… ॥४॥
श्री ‘रिसहेसर दास’ तिहारो, अरज करत कर जोर…॥५॥