महाव्रतोने पाळे पळावे, सिंहसत्त्वधर गुरुवर,
शास्रो पण गुण गाता बोले, तीर्थंकर सम
सूरिवर, जिनशासनने आप्या जेणे, बे-बे
महाधुरंधर, गुरुभक्तो ते धन्य दिवसने,
उजवो थईने तत्पर…(१)
सुखदं-शिवदं, महामोहहरणम्,
वैशाख सुद सातम भवतरणम्…..(२)
लाखो गुरुभक्तोंनुं जे, शुभआलंबन कहेवाय
छे, वैशाख सुद सातमनी पताका,
आसमाने लहेराय छे, उर्जादाता उर्जापुरुष,
श्री पूर्णचन्द्र गुरुदेव छे, तीर्थोद्धारक
प्रतिभाशाळी,मुक्तिप्रभ गुरुदेव छे….(३)
संसार विसर्जन, ईतिहासनुं सर्जन,
चौदराजना सर्वजीवोने, अभय तणुं
उद्घोषण, सुखदंद…(४)
मौनमस्तिना साधक उंचा, श्रुत ज जेनो श्वास
छे, सिद्धहस्तलेखक सूरिवर, जिनशासननो
विश्वास छे, कल्याणक भूमि उद्धारक,
लेखक-वक्ताने कविवर, कुनेह बुद्धिनो
दरियो मोटो, जीर्णोद्धार ज्योतिर्धर….(५)
बेउ बंधु सूरिवर, गुणगणनो समंदर,
प्रभुशासनना प्रभावकोनो, सकल संघ करे
आदर, सुखदं…(६)
सरलस्वभावी-निरभिमानी-निःस्पृही-भगवंत
छे, पवित्र निर्मल संयमना, सित्तेरमां
वर्षंनुं स्वागत छे, जुग जुग जीवजो
सूरिवर बेउं, वधाई तमने अनंत छे,
‘परमर्षि’ कहे वैशाख सुदनी, सातम जगजयवंत छे…(७)
“सुहगुरु जोगो” ए, भवोभव मांगे मन,
“तव्वयण सेवा” थी थाशे, तन-मन-जीवन पावन, सुखदं…(८)