मैं तो निरख्या निर्मल संत,
मारा हैये खिली वसंत….
त्यागी-तपसी उर्जावंत,
मारा हैये खिली वसंत…(१)
तर्ज: (ना कजरे की धार)
गुरुवर गोचरिए जाय,
घर-घर धर्मलाभ संभळाय,
धर्मलाभ… धर्मलाभ…
ज्यां गुरुवरना पगला थाय,
त्यां आनंद मंगल वरताय,
जेना गुणों छे अनंत,
मारा हैये खिली वसंत…
मैं तो निरख्या निर्मल संत,
मारा हैये खिली वसंत….(२)
गुरुवर स्वाध्यायमां लीन,
गुरुभक्तिमां तल्लीन,
आज्ञा पालनमां लयलीन,
भोग विलासे जे गमगीन,
जीनागममां श्रद्धावंत,
मारा हैये खिली वसंत…
मैं तो निरख्या निर्मल संत,
मारा हैये खिली वसंत…(३)
गुरुवर अभयदानमां शूरा,
करे पापना चुरेचुरा,
जेना दर्शन लागे मधुरा,
संभाळे शासन धूरा,
भक्ति जेनी भाग्यवंत,
मारा हैये खिली वसंत…
मैं तो निरख्या निर्मल संत,
मारा हैये खिली वसंत….
त्यागी-तपसी उर्जावंत,
मारा हैये खिली वसंत…(४)