मारे रोमे रमता, मारे हैये वसता,
प्रियतम प्रभुने पलपल,
प्रसन्नताए नित नमता,
नाथ निरंजन निशदिन हां,
मुज नयनोने गमता,
एना गुणगाने मारे,
संयम उज्जवळ करवुं छे,
एनी प्यारी आणा धारी,
भवसागरथी तरवुं छे,
परम केरी प्रिते मारे,
संयम स्पर्शन करवुं छे…
सत्व केरा बीजे मारे,
आतम दर्शन करवुं छे…(१)
संसारनी असारता केवी,
ए गुरुमानी वातो हितकारी,
दुक्खरुवे ने दुक्खफले वळी,
दुक्खाणुबंधने करनारी,
शाश्वत सुख जे साचुं,
जेना चरणोमां पाउं,
चौदराजे अभय दईने,
हुं संयममां रंगाउं,
खुशीनी धन्य पळोमां,
निशदिन निजमां रमवुं छे,
विरागनी वाटे मारे,
कर्मो सागे लडवुं छे,
परम केरी प्रिते गारे,
संयम स्पर्शन करवुं छे…
सत्व केरा बीजे मारे,
आतम दर्शन करवुं छे…(२)
जे धन्य घडीनी राह जोई’ती,
ए योग आयो आंगणीये,
हुं अंतरमनथी स्नेह संबंधने,
छोडी घरना ए बारणीये,
फरी फरीने आशिष लेता,
संघ सकलने वधावुं,
आतमने कृतार्थ करवा,
नंदीनी नाण मंडावुं,
रजोहरण लई नाची (नाचुं) हर्षे,
नयनोथी वरसवुं छे,
यशस्वी वेष अंकित करी,
परमपद मेळववुं छे,
परम केरी प्रिते मारे,
संयम स्पर्शन करवुं छे…
सत्व केरा बीजे मारे,
आतम दर्शन करवुं छे…(३)