Mati Shrut Avdhi Jnanatrayne (Hindi)

Mati Shrut Avdhi Jnanatrayne (Hindi)

मति श्रुत अवधि ज्ञानत्रयने, गर्भमां अवधारता,

संयम समय जे ज्ञान चोथु, सर्वजिन ते पामता,

करी घोर साधना जे ओकांतमां, ज्ञानपंचम पामता,

“ज्ञानावरणीय” कर्म हर, अरिहंतने करू वंदना. ॥१॥

जे प्रभु तणा दर्शन थकी, कई जीव समकीत पामता,

जे प्रभु तणा दर्शन थकी, कई जीव संयम पामता,

जे प्रभु तणा दर्शन थाकी, जीवो बधा सुख पामता,

“दर्शनावरणीय” कर्म हर, अरिहंतने करू वंदना. ॥२॥

तुज वचननी आराधना, शाता तणं ए मूल छे,

तुज वचननी विराधना, अशातानुं ए मूल छे,

अशाता टाडो, शाता दियो, एज छे मुज याचना,

“वेदनीय” कर्म मलहर, अरिहंतने करू वंदना. ॥३॥

जे प्रभु तणी वचन शंका, दर्शनमोहनुं मूल छे,

जे प्रभु तणी श्रमणनींदा, चारित्र मोहनुं मूल छे,

शंकाटले, श्रद्धा मले, गुण प्रेमनी करू याचना,

“मोहनीय” कर्म मलहर, अरिहंतने करू वंदना. ॥४

सवी जीव करू शासन रसीनी, भव्य भावना भावता,

सवी जीव ना कल्याण काजे, जे घोर साधना साधता,

शिवमस्तू सर्व जगत काजे, अखेद देशना आपता,

“आयुष्य” कर्म मलहर, अरिहंतने करू वंदना. ॥५॥

आदेय, यश, सुस्वर नाम जिन, नामथी सौ पामता,

शुभ गति अने जिनमति प्रभु, तुज जापथी सौ पामता,

नामना नी ना रहो नाथ रे, मुज ने कदी पण कामना,

मुज “नाम” कर्म मलहर, अरिहंतने करू वंदना. ॥६॥

ऋषभादिक त्रेवीस जिनवरा, प्रभु उचकुले अवतरिया,

करी “कुलमद” मरीचि भवे, नीचगोत्रमांहे आवीया,

तुज कर्म कथनी आ सुणीने, आज थई संवेदना,

“गोत्र” कर्म मलहर, अरिहंतने करू वंदना. ॥७॥

स्रेहरागथी स्नेहीजनोने, दीक्षा तणा अंतराय कर्या,

निजमतिथी कई जीवने, तपधर्मथी दुरे कर्या,

शुभक्षेत्रने सातक्षेत्र मां, विघ्नो घणा मुजथी थया,

“अंतराय” कर्म मलहर, अरिहंतने करू वंदना. ॥८॥

आठे कर्मों मां जे कह्यो, प्रभुए एक ते शिरमोर छे.

ज्ञानादि आतमधन तणो, जे एक चोरणहार छे,

तत् अन्य साते कर्मनो, जे एक पालनहार छे,

ते मोह घातक वरबोधी, जिनराज तारणहार छे ॥९॥

 

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