मेरो प्रभु ! पारस अंतरयामी…
और सुरासुर देखी न रीझुं,
प्रभु सेवा मैं पाउं,
मेरो प्रभु ! पारस अंतरयामी… ॥१॥
रंक की कुण आण धरे शिर,
तजी त्रिभुवननो स्वामी,
मेरो प्रभु ! पारस अंतरयामी… ॥२॥
दुःख भांजे छीन मांहि नवाजे,
शिवसुख दो शिवगामी,
मेरो प्रभु! पारस अंतरयामी… ॥३॥
क्यां कहीये तुमसे किरपानिधि,
खमजो मारी खामी,
मेरो प्रभु ! पारस अंतरयामी… ॥४॥
कहे “जिनहर्ष” परम पद पावु,
अरज करूं शिरनामी,
मेरो प्रभु ! पारस अंतरयामी… ॥५॥