निरखता तुजने प्रभु,
मुज देह रोमांचित बने,
तारी करुणा धार वहेता,
दोषो मारा उपशमे.(१)
प्रभु मन थकी तुं ना खसे,
मुज आसपासमां तु वसे;
मुज श्वास ने उच्छवास मां,
बस एक तुं ही तुं श्वसे,
मारा मननुं ए संगीत रे,
बस तुं ही मननो मीत रे… (२)
होठनुं ए मधुर स्मित,
ने निर्विकारी छे नयन,
पूर्णिमाना चंद्रथी पण
सौम्य शीतल छे वदन;
देखाय मुजने तुं दश दिशे,
जाणे मुजने जोईने तु हसे…
मुज श्वासने… मारा मननुं…(३)
चित्तनी प्रसन्नता मळे,
ताहरा पूजन थकी,
भाग्य खिले माहरु प्रभु,
तारा गुणकीर्तन थकी;
प्रभु ताहरा बस एक स्पर्शे,
कर्मो मारा दूर जशे…
मुज श्वासने… मारा मननुं…(४)