निरंजननाथ मोहे कैसे मिलेंगे,
कैसे मिलेंगे मोहे कैसे मिलेंगे…
दूर देखुं में दरिया डुंगर,
ऊंचे बादल नीचे मियुं जतले रे,
निरंजन ॥१॥
धरतीमां ढूंढू तिहा नहीं रे पिछाणुं,
अग्नि सहुं तो मोरी देह जले रे,
निरंजन ॥२॥
“आनंदधन” कहे जस सूनो बाता,
तुंही जो मिले तो मेरो फेरो टले रे,
निरंजन ॥३॥