ओघा अनंती वार मैं लीधां,
सगळा गया ए निष्फळ,
आ वार प्रभुजी तारा सहारे,
मोहने करशु निर्बल,
निष्फळ अमाएं जीवन…
आ भोगोनी पाछळ, वहे छे भगवंत….(१)
तारा वचन पर श्रद्धा मारी,
केम करे छे हलचल,
गुणमां ज सुख छे,
ने दोषोमां दुःख छे,
समजे ना मन मारूं पागल,
निष्फळ अमारु जीवन…
आ भोगोनी पाछळ, वहे छे भगवंत…(२)
पांच प्रहरनो स्वाध्याय करजो,
आपे कीधुं हरपल,
पण मन अमारु केवु चंचल,
निंदा विकथा पाछळ…
निष्फळ अमारूं जीवन…
आ भोगोनी पाछळ, वहे छे भगवंत…(३)