पद्मप्रभ प्राणसे प्यारा,
छोडावो कर्मनी धारा;
करम फंद तोडवा धोरी,
प्रभुजी से अर्ज है मोरी. पद्म०१
लघुवय अेक थे जीया,
मुक्तिमें वास तुम किया;
न जाणी पीड तें मोरी,
प्रभु अब खींच ले दोरी. पद्म० २
विषय सुख मानी मों मनमें,
गयो सब काल गफलतमें;
नरक दुःख वेदना भारी,
नीकळवा ना रही बारी. पद्म० ३
परवश दीनता कीनी,
पापकी पोट शिर लीनी;
न जाणी भक्ति तुम केरी,
रह्यो निशदिन दुःख घेरी. पद्म०४
इसविध विनति मोरी,
करूं में दोय कर जोडी,
आतम आनंद मुज दीजो,
‘वीर’ नुं काज सब कीजो. पद्म०५