परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा करते समय बोलने के दोहे | Parmatma ki Teen Pradakshina Karte Samay Bolne ke Dohe

परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा करते समय बोलने के दोहे | Parmatma ki Teen Pradakshina Karte Samay Bolne ke Dohe

परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा करते समय बोलने के दोहे

१. काल अनादि अनंत थी भव भ्रमण नो नहीं पार,
ते भव भ्रमणा निवारवा प्रदक्षिणा देउं त्रण वार ॥१॥

भमतिमां भमता थकां भव भावठ दूर पलाय,
दर्शन ज्ञान चारित्र रुप प्रदक्षिणा त्रण देवाय ॥२॥

२. जन्ममरणादि भय टले, सीझे जो दर्शन काज,
रत्नत्रयी प्राप्ति भणी दर्शन करो जिनराज ॥३॥
ज्ञान बड़ा संसार में ज्ञान परमसुख हेत,

ज्ञान विना जग जीवडा न लहे तत्त्व संकेत ॥४॥

३. चय ते संचय कर्म नो रिक्त करे वली जेह,
चारित्र नाम निर्युक्ते कां वंदो ते गुणगेह ॥५॥

दर्शन ज्ञान चारित्र ए रत्नत्रय निरधार,
त्रण प्रदक्षिणा ते कारणे भवदुःख भंजनहार ॥६॥

निसीही निसीही निसीही (मतलब निषेध)
संसार के सभी पापकार्यो-विचारों का त्याग.

“तीन निसीही” कहाँ बोलना?
(१) मन्दिर में प्रवेश करते (२) गभारे में प्रवेश करते
(३) चैत्यवंदन (भाव पूजा) के प्रारंभ करने से पहले

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