प्रभु वीरनो वेश सजीने, गुरु आणाने शिर धरीने,
प्रभुनो बनी, प्रभु हुं बनु, अंतरमां एकज लक्ष…
संयम, संयम रस… संयम, संयम रस…(१)
सत्त्वने वीरताथी हुं, तोडू मोहना बंधन,
वंदे हरदिन, झंखे निशदिन, देवता जे जीवन,
आत्मानंदी-सिद्धिदायी, रजोहरण सुखदायी,
चौद्रराजे अभयदायी, विरती प्रभु स्पर्शदायी,
गुरुवर बनावशे आजे, मने वीरनो वारस,
प्रभुनो बनी, प्रभु हुं बनु, अंतरमां एकज लक्ष…(२)
जिनाज्ञा ने गुर्वाज्ञानो, थाशे हवे संगम,
रजोहरण लई भारे, बनवुं हवे जंगम,
विरतीनो वेशधारी, थावुं हवे गिरनारी,
कर्मा तणा संग्राममां, नेमि बन्या छे सारथी,
नमी नेमिने, वरुं मोक्षने, आज हवे एक लक्ष,
प्रभुनो बनी, प्रभु हुं बनु, अंतरमां एकज लक्ष..(३)
…..संयम मनोरथ की धुन….
पथ परमनो छे मस्त, हवे जाग्यो संयम रस…
करूं पापोने हुं ध्वस्त, हवे जाग्यो संयम रस…
प्रभु झालोने मारो हस्त, हवे जाग्यो संयम रस…
मारे पामवो तारो स्पर्श, हवे जाग्यो संयम रस…
संबंधो छे स्वार्थी निरस, हवे जाग्यो संयम रस…
हवे संयम पाळुं सरस, हवे जाग्यो संयम रस…(४)