प्राण प्यारा प्रभुनुं अर्चन, आपना शासननुं स्पर्शन,
करवा जीवन करूं समर्पणम्….
आपो रजोहरण… आपो रजोहरण…
ओ गुरुवरम्… आपो रजोहरण…(१)
आंधळी छे दोट जगनी, चौतरफ विलास छे,
आतम दोडे सतत ज्यां, ए तरफ विनाश छे,
आज मळी ए साची समजण, तारशे हवे तारुं सगपण,
तरवा जीवन करूं सर्मपणम्…
आपो रजोहरण… आपो रजोहरण…
ओ गुरुवरम्… आपो रजोहरण…(२)
वैभवी आ आपनुं जे, वैरागी आवास छे,
ए तरफ आववानो मारो, आ प्रभु प्रयास छे,
साधना ज्यां थाये हरदम, मुक्तिनी वागे सरगम,
सुणवा जीवन करूं समर्पणम्…
आपो रजोहरण… आपो रजोहरण….
ओ गुरुवरम्… आपो रजोहरण….(३)
थाओ स्पर्श मुनि वेषनो, महाव्रतोमां व्हालुं ए, पावन देशनो,
विरतीनी करवी छे आराधना, मोह त्यजीने, करवी छे साधना….(४)
आपनी छायामां रहीने हुं, करूं जे साधना,
आप सम थावा ओ प्रभुवर, मारी हर आराधना,
समता निर्मलता सरलतानुं, बनुं साचुं हुं दर्पण,
बनवा मुनि जीवन करूं समर्पणम्…
आपो रजोहरण… आपो रजोहरण…
ओ गुरुवरम्… आपो रजोहरण…(५)