प्रव्रज्यानी पांखोथी, आर्हंत्यना आकाशे आवुं,
दोडी दोडी मारे मारा, प्रिय प्रभुजी पासे जावुं…(१)
(प्रभु एक ज मम शरणम्…
लक्षय मारूं छे भव-तरणम्…
मळजो, मळजो, मळजो मने रजोहरणम्…
मळजो मने रजोहरणम्…
टळजो मम भव-भ्रमणम्…)…(२)
अहीं सहुथी वधु जे प्रेम करे,
तेनी ज कदर कोई करतुं नथी,
निःस्वार्थभावे जे स्नेह धरे,
तेने हैयामां कोई धरतुं नथी…(३)
संसारे न करवुं विचरणम्…
विरति-वने करवुं विहरणम्…
सद्गुणोनुं करतुं विस्तरणम्…
विभावोनुं करवं विस्मरणम्…
(प्रभु एक ज मम शरणम…)(४)
दुःखोना भारने खुशीथी वहन करूं,
बीजाना सुखने सुखेथी सहन करूं,
दुःखो आवे त्यारे चिंतन गहन करूं,
ईर्ष्या-काम अने क्रोधादिनुं दहन करूं…..(५)
मुज हाथमां हो उपकरणम्…
मुज हैयामां हो जिन-चरणम्…
मुज मनमां हो जिनआणा-धरणम्…
गुरुमय हो मम अंतःकरणम्…
(प्रभु एक ज मम शरणम्…)(६)