रजोहरण रजोहरण निशदिन
चाहुं छुं एनुं शरण,
रजोहरण रजोहरण माहरा
जीवननुं तारण तरण,
भटकीने भव-भव मांहि रे
आयो माहरो आतम,
हवे छुठीने हुं संसारथी
अजवाळुं जनमोजनम…
रजोहरण मांगुं गुरुमाँ,
रजोहरण पामुं गुरुमाँ,
रजोहरण तुज हाथे
आपोने गुरुमाँ….(१)
होऽऽ…
जोयो जाण्यो मैं तो
माण्यो श्रमणोनो संग रे,
लाग्यो मने रंगावाने
संयमनो रंग रे,
प्रभुना राहे रहेवा चाहे
मुज अंगे अंग रे,
रोमे-रोमे आतम भोगे
विरति तरंग रे….(२)
काजल समा ए श्याम
रंगमां साधुपदे सोहुं,
उज्जवल वेष परिधानथी परमपदे मोहुं,
रजोहरण मांगुं गुरुमाँ….(३)
होऽऽ…
पल-पल गमे संयम
हवे जिनआणा साथ रे,
अध्यात्मनी वातो सुणुं आगम संगाथ रे,
व्हाल करी माथे फरे यशस्वी हाथ रे,
सुविधिथी सुव्रत लई
बनवुं सनाथ रे….(४)
मन मोडी करूं हुं
भावथी स्व साधना न्यारी,
हवे परने छोडी “अंकित”
करूं मुक्ति वधू प्यारी,
रजोहरण मांगुं गुरुमाँ….(५)