संयमनी सुंदर सवारी, गुरु निश्रा मनहारी,
ज्यां खुशियोनुं छे सरवर,
वरसे कृपा प्रभु तारी.. (१)
सिंह सत्त्वथी करवी छे साधना,
मने संसारनीना कोई चाहना,
भौतिक सुख मुजने ना गमे,
बस मारा मनमां संयम ही रमे,
संयमथी प्रीत बंधाई, समताना रंगे रंगाई,
अंतरमां आनंद छाई, संयमनुं स्पर्श मैं पाई,
मारे जवुं… विरति नगरे मारे जवुं…(२)
उजळा-उजळा भावो वहे,
क्रियामां शुध्द आचारो रहे,
शुभ ध्यानमां सदाये रमवा,
तप-जप करो गुरु वाणी कहे,
नवकारनो छे सथवारो, ज्यां विरतिनो
रणकारो,आस्वाद मुक्तिनो प्यारो,
संयम हृढ्या धारो.. (३)
लोगस्सनो काउसग्ग करवा, खामसमणा
सौने देवा,वीस नवकारवाळी गणवा,
चालो उपधान तपने करवा…(४)
संयमनी सुंदर सवारी, गुरु निश्रा मनहारी,
ज्यां खुशियोनुं छे सरवर, बरसे कृपा प्रभु
तारी..संयमथी प्रीत बंधाई, समताना
रंगे रंगाई,अंतरगां आनंद छाई,
संयमनुं स्पर्श मैं पाई,मारे जवुं…
विरति नगरे मारे जवुं… (५)