समाधि दिव्य समाधि,
समाधि ओ दिव्य समाधि…(१)
जेनां हैयामां समता समाधि बहु,
एवी उत्तम समाधि हुं याचुं प्रभु,
समाधि दिव्य समाधि,
समाधि ओ दिव्य समाधि…(२)
थया जिनवाणीथी शासन रागी,
कीधां शासन कार्यों थई अनुरागी,
कर्या जीवदयाना तमे काम अनेक,
जीवोने आपी सुखशाता तमे,
समाधि दिव्य समाधि,
समाधि ओ दिव्य समाधि…(३)
वीरनी भक्तिथी बन्या वैरागी,
बन्या गुरुलर संगे संयम रागी,
लाव्या चरमतीर्थपति तमे गृह मंदिरे,
भक्तिथी थयो परिवार संयमी हवे,
समाधि दिव्य समाधि,
समाधि ओ दिव्य समाधि…(४)
करो नवकार लेखननी साधना,
धरो गुरु समर्पणनी आराधना,
करी वर्धमान तपनी तमे ओळी अनेक,
रोगोनी बच्चे धरी समता तमे,
समाधि दिव्य समाधि,
समाधि ओ दिव्य समाधि….(५)
कर्यो अरिहंतनादे देह त्याग,
छोड्यो निर्विकारी थई राग,
अंतिम मुखमुद्रा अति प्रसन्न हती,
आपे हवे समझण सद्मतिनी,
समाधि दिव्य समाधि,
समाधि ओ दिव्य समाधि….(६)
रहेजो आप सदा मारी पास,
करजो निशदिन मुझमां वास,
संयम आपी कर्यो मुझ पर उपकार,
देजो मुझने समाथि उपहार,
समाधि दिव्य समाधि,
समाधि ओ दिव्य समाधि…(७)
थया आप निःसंगनां प्रेमी
हवे समतानो कर्यो दिव्यध्वनि,
दिव्यचरण हवे मळे अमने सदा,
शुभ भावोनी करोने वर्षा तमे,
समाधि दिव्य समाधि,
समाधि ओ दिव्य समाधि…(८)