विरतिधरनो वेष प्यारो प्यारो लागे रे,
संसारीनो संग खारो खारो लागे रे
भवसागर छे भारी मुजने, तरता ना फावे,
तरवानी घणी होंश मुजने, कोण हवे उगारे,
संयमनो आ पंथ, तारणहारो लागे रे… संसारी…
साचा सुखने शोधुं हुं, मने मारग कोण देखाडे ?
आंगळी मारी पकडो मुजने मुक्ति पंथ बतावे,
सदगुरु नो एक ज साचो लागे रे… संसारी…
रजोहरण मेळववानो हवे, मन मारुं लोभायुं,
गुरुकुळमां वसवाने काजे दिल मारुं ललचायुं,
महावीर तारो मार्ग, कामणगारो लागे रे… संसारी…