Sanyam Bhavyatra Vandnavali

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Upakaran Vandana

संयम भावयात्रा

निश्रा : जैन साईट प्रणेता गुरुदेव श्री भाग्यचंद्र विजयजी महाराज साहेब

कर्मो उपार्ज्या जे धणां अज्ञान थी आवेश  थी

ते सर्व पाप विनाश  थाओ श्रमण ना आ वेष थी

गणवेश ना आ विश्व  माँ छे स्थान जेनु विशेष  थी

ते श्रमण सुन्दर वेष ने भावे करूँ हु  वंदना…………१

जे वेष ने प्रभुए धर्यो प्रभुए  भर्यो सुभता  थकी

जे वेष ने  प्रभुए कहियो आचार थी वलि आण थी

जे वेष ने लेता ज  सोहे जीनवरा चउनाण थी

ते श्रमण सुन्दर वेष ने भावे करू  हु  वंदना……………२

गणधारी  ने गुणधारी  वली व्रतधरियो थी शोभतो

स्थुलिभद्र शालिभद्र,सम मुनिवर थकी ते शोभतो

केवलधरा पूर्वधरा बहुश्रुतधारा धारण करे

ते श्रमण सुन्दर वेष ने भावे करू हु  वंदना………..३

देवो तणा स्वामी सदा जे वेष काजे तरफ़दे

श्रेणिक समा  परमार्हतो  ना  जीवनमा जे ना जडे

बहुपुण्यकारि जीव ने जे वेष अमुलख सांपडे

ते श्रमण सुन्दर वेष ने भावे करू हु  वंदना…………४

जे वेष ने जगत  धारण करे वंदन जगत तेने करे

जे वेष ने नज़रे निहाली  केक भवसागर तरे

आ विश्व  मा जे वेष काजे लोक बहु आदर धरे

ते श्रमण सुन्दर वेष ने भावे करू हु  वंदना…………५

जीवन तणु बहु मूल्यवन्तु समयधन एडे गयु

ने वित्त बहु घनु ए करि अधिकरण ने फाले  गयु

उद्धार करि उपकार करतु उपकरण साचु कहयु

उपकारकारी उपकरण ने भाव थी  वंदना…………६

जड़  पुदगलो समभाव धारी जीव ने आवि मले

पण कोई तेनु शु करे ते कोई ने क्याथी कले

उपयोग तेनो शुभ थता जड़ छे छता जड़ता टले

उपकारकारी उपकरण ने भाव थी  वंदना…………..७

गृहरजतणु  वारण करे तेने  मनुज करमा ग्रहे

जे कर्मरज ने दूर करतु रजोहरण किम ना ग्रहे ?

छे कर्मयुद्धे जेह असी सम करतु कर्म निकन्दना

उपकारकारी उपकरण ने भाव थी  वंदना………८

विण पात्र भोजन साधु ने प्रभुऐ नीषेध्यु  तेह थी

कल्पे ग्रहण सुविहित मुनिने पात्र नु सुविवेक थी

करो कामना धरो भावना करूँ पात्रदान  हु टेक  थी

उपकारकारी उपकरण ने भाव थी  वंदना……………..९

जयणा तणु  साधन बने रक्षण तणु कारण बने

जे स्व परनु परिजन बनीने  जीव नु तारण बने

छे धन्य ते सहु श्रमण ने  कंमबल सदा धारण करे

उपकारकारी उपकरण ने भाव थी  वंदना……….१०

छे बोध  रहयो अक्षर महिं अक्षर रहया छे पुस्तके

बने ज्ञान साधन पोथी प्रत तेह ने  धरु हु मस्तके

अक्षर कहो साक्षर कहो छे अभेदनय थी एकता

उपकारकारी उपकरण ने भाव थी  वंदना………..११

साधक मुनि ना हस्त माँ जपमाल ना  मनका फरे

ऊर्जा खरे चोतरफ थी ने सूक्ष्मना तणखा जरे

माला  ग्रही करी जाप प्रभु नो पापनी क्षपणा  करे

उपकारकारी उपकरण ने भाव थी  वंदना………..१२

अपराधी होय तो पण कदी कोई जीवने  नव मारता

पण काष्ठनिर्मित मेरुशिखरि  दंड ने जे धारता

त्रण दंड ने फटकारता कर मोक्षदंडक  राखता

उपकारकारी उपकरण ने भाव थी  वंदना………13

भूमि प्रमार्जी पछी बेसे सदा जे आसने

वस्ति महिं पण चालता नीशिऐ जुवे दंडासने

पात्रक तणु करवा प्रमार्जन पुंजणि ने  अपेक्षता

उपकारकारी उपकरण ने भाव थी  वंदना…………१४

करी साधना लई श्रम धणो  संस्तारके मुनि सुवता,

नव साधना काजे नवु लइ जोम ज्याथी उठता,

जड़ छे छता महाभाग्य करें मुनि देहनी विश्रामना,

उपकारकारी उपकरण ने भावथी करु वन्दना…  ..15

छे मुख्य साधन सधना पण जेह विन ते थाय ना,

साधन तनु साधन बनी करे उदय ते वीसराय ना

नत मस्तके ते साधनोना वृंद ने पाये पड़ी,

उपकारकारी उपकरण ने भावथी करु वन्दना.. ..१६

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