सौनी भेगो पण छे-जुदो मुज आत्मा,
उपधानमां मळी जाशे मारो आत्मा…
जिनवाणी ने सुणता सुणता दूर थशे अज्ञान,
गुरु जयन्त नी जन्म भूमिमां पामशुं
आतमज्ञान प्रमादभावथी… दूर रही ने,
उपयोगमांहे चित्त धरीने…
अधिकार सूत्र नो पामशे मारो आत्मा,
उपधानमां मळी जाशे मारो आत्मा…
रह्या जे मधुकर वीर छे,
नित्यसेन सुरीजी धीर गंभीर छे…
अनुभवाशे-निपुणताथी मारो आत्मा
उपधानमां मळी जाशे मारो आत्मा…