शंखेश्वर स्वामी,
त्रण जगना स्वामी छे,
भक्तजनोना,
मनमंदिरना अंतर्यामी छे,
वामाजीना नंदन,
मुज मन विसरामी छे…(१)
तमे त्रणलोके पूजाया,
हां पूजाया,
शंखेश्वरदादा मुज मनमंदिर आया,
विश्वनुं मंगल करवा,
हां करवा,
कलिकाले छो कल्पवृक्षनी छाया,
शंखेश्वर, दादानो,
विश्वास अनेरो छे,
दुःख संकटनी वच्चे,
संरक्षण पहेरो छे…(२)
अभिषेक घारा वस्सती,
हां वरसती,
सारी दुनिया तो अने जोवा तरसती,
भावोनी भरती चढती,
हां चढती,
नैया भक्तोनी ऐने सहारे तरती,
विहनोने, हरनारूं,
स्नात्र तमारूं छे,
तेज भरेलुं मुखडुं तारूं,
प्राण प्यारुं छे…(३)
तुज च्यवन जन्मने दीक्षा,
हां दीक्षा,
प्रीति भक्तिने विरतिनी हितशिक्षा,
तारूं केवलज्ञान कल्याणक,
हां कल्याणक,
समवसरणे बोलावो आ बालक,
क्षपक श्रेणी, मंडावो,
आपो केवलज्ञान,
तुज निर्वाणे हुं पण पामुं,
तुज चरणे निर्वाण…(४)
संयम सुवर्ण वर्षे, हां वर्षे,
आव्यो छुं हुं तुज चरणोमां हर्षे,
तुं रोमे-रोमे वसजे, हां वसजे,
तारी भक्तिथी मुज सहु कार्यो सरशे,
शंखेश्वर, सर्वेश्वर, रढणा जागी छे,
ऐ रटणाऐ मारी मोहजरा भागी छे…(५)
आत्म कमलमां लब्धि, हां लब्धि,
तुज कृपाए थाये ए उपलब्धि,
तुज अनुपम विक्रम आपो, हां आपो,
“अजित”, संस्कारने तुज पदपद्ने स्थापो,
विनंति, उर घरजो, तुं जगनामी छे,
तुज प्रभु भुज सूरज चंदा,
तुं हितकामी छे….(६)