शीयल समुं व्रत को नहि, श्री जिनवर एम भाखे रे;
सुख आपे जे शाश्वता, दुर्गति पडता राखे रे. शीयल (१)
व्रत पच्चक्खाण विना जुओ, नव नारद जेह रे;
एकज शियल तणे बले, गया मुक्ते तेह रे. शीयल (२)
साधु अने श्रावक तणां, व्रत छे सुखदायी रे;
शियल विना व्रत जाणजो, कुशका सम भाई रे.
शीयल (3)
तरूवर मूळ विना जिस्यो, गुण विण लाल कमान रे;
शीयल विना व्रत एहवं, कहे वीर भगवान रे. शीयल (४)
नव करी निर्मळं, पहेलुं शीयल ज धरजो रे;
उदयरत्न कहे ते पछी, व्रतनो खप करजो रे. शीयल (५)