श्री नमिनाथने चरणे नमतां,
मनगमतां सुख लहीअे रे;
भव-जंगलमां भमतां रहीअे,
कर्म निकाचित दहीअे रे. श्री०१
समकित शिवपुरमांहि पहोंचाडे,
समकित धरम आधार रे;
श्री जिनवरनी पूजा करीअे,
अे समकितनो सार रे. श्री०२
जे समकितथी होय उपरांठा,
तेना सुख जाये नाठा रे;
जे कहे जिनपूजा नवि कीजे,
तेहनुं नाम न लीजे रे. श्री०३
वप्राराणीनो सुत पूजो,
जिम संसारे न ध्रूजो रे;
भवजलतारक कष्ट निवारक,
नहि कोई अेहवो दूजो रे. श्री०४
कीर्तिविजय उवज्झायनो सेवक,
“विनय” कहे प्रभु सेवो रे;
त्रण तत्त्व मनमांही अवधारी,
वंदो अरिहंतदेवो रे. श्री०५