सुमाता जनश्वर मूरत सुदर,
सुमति पसाये दीठी रे अणीयाळी आंखलडी जिननी, मनमां लागी मीठी रे सुमति… (१)
आश विलूधां बोघा माणस,
तारकनी परे तारे रे आंख तणे लटके मुख मटके,
निरखे सेवक ज्यारे रे सुमति… (२)
आसक एक दीदार करारी,
प्रसन्न होवे मोटा रे अलवी अवरनी सेवा करतां,
शुं आपे चित्त खोटा रे सुमति… (३)
जो पण मनमां सेवक सघळा,
गणती मांहे गणशे रे मन मारे तोही आशा पूरण,
वातो, आहिंज बनशे रे सुमति… (४)
भक्तितणे वश विसवावीसे,
सेवा करवा एहनी रे विमल मने दान वंछित देशे,
नहि परवा तो केहनी रेसुमति… (४)