थाशुं प्रेम बन्यो छे राज, निर्वहेशो तो लेखे.
में रागी प्रभु ! थें छो नीरागी,
अणजुगते होय हांसी;
अेक पखो जे नेह निर्वहेवो,
तेह मांकी शाबाशी. थाशुं० १
नीरागी सेव्ये कांई होवे,
इम मनमें नवि आणुं;
फळे अचेतन पण जिम सुरमणि,
तिम तुम भक्ति प्रमाणुं. थाशुं० २
चंदन शीतलता उपजावे,
अग्नि ते शीत मिटावे;
सेवकनां तिम दुःख गमावे,
प्रभुगुण प्रेम स्वभावे. थाशुं० ३
व्यसन उदय जे जलधि अनुहरे,
शशीने तेह संबंधे;
अणसंबंधे कुमुद अनुहरे,
शुद्ध स्वभाव प्रबंधे. थाशुं० ४
देव अनेरा तुमथी छोटा,
थें जगमें अधिकेरा;
“यश” कहे धर्म जिनेश्वर थाशुं,
दिल मान्या है मेरा. थाशुं० ५