तुम दीठे सब दीठो प्रभुजी…
ओर कोई भावे नहीं जग में,
तुंही सब से मीठो,
प्रभुजी ! तुम दीठे सब दीठो… ॥१॥
सकल पदारथ सार है तुंही,
तुंही अगम अदीठो,
प्रभुजी ! तुम दीठे सब दीठो… ॥२॥
दरिशन दीठो अमृत वूठो,
नीठो सकल अनीठो,
प्रभुजी ! तुम दीठे सब दीठो… ॥३॥
सब देवन को देव है तुंही,
तुंही जग में जेठो,
प्रभुजी ! तुम दीठे सब दीठो… ॥४॥
“वाचक जश” कहे साहिब मेरो,
हसी हसी हियडे पेठो,
प्रभुजी ! तुम दीठे सब दीठो… ॥५॥