उगता सूरजनी संगाथे,
वीते पलपल तारी साथे,
दादा ज्यां अंधारूं थातुं,
वीते छे झुरवामां रातुं….
उगता सूरजनी संगाथे…(१)
कानोमां गुंजे तव वाणी,
मधुरतानी ऐ महाराणी,
नयनो छलके अमृत दरिया,
जोता अम आंखे झळझळीया,
आकंठ करूं तारा प्रभु,
कंठ तणु हुं पान,
त्रणे लोकमां तुज सम,
बीजो नहीं भगवान…
उगता सूरजनी संगाथे…(२)
बे हाथे नित आशिष देतो,
शुभं भव स्मित साथे कहेतो,
चालो साथे राते मळशुं,
चरणो पकडी तुजने कहेतो,
साथ आवोने पासजी,
ना करशो निराश,
दिवसे हुं तुज पासमां,
राते तुं मुज पास…
उगता सूरजनी संगाथे…(३)
तुज मुरतिमां तुंज छवायो,
ज्यां जोउं त्यां तारो सांयो,
सुरज चंद्रनुं तेज तमाम,
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, राम,
सागर सरिताकाशने,
मेरुथीय महान,
पार्श्व शंखेश्वरनाथ तुं,
लोकोत्तर ब्रह्मांड…
उगता सूरजनी संगाथे…(४)
गुरु अजितनुं झंखे अंतर,
तुज श्रद्धाना सात समंदर,
सर्व समर्पणताना मोजा,
उछळे ज्यां अडवाने अंबर,
रोम-रोमनी प्यास तुं,
आश अने अभिलाष,
तुं ज छे मारूं आयखुं,
तुं छे श्वासोश्वास…
उगता सूरजनी संगाथे…..(५)