उमैया मुजने घणी, जीहो भेटुं विमलगिरिराय,
दे तारी मुज पांखडी, जीहो लळी लळी लागुं पाय रे,
मोहनगारा हो राज रुडा मारा सांभळ सलूणा. १
शत्रुंजय शिखर सोहामणो, जीहो धन्य धन्य रायणे रूख;
धन्य पगलां प्रभुजी तणां; जीहो दीठडे भांगे भूख के.
मोहन० २
इण गिरि आवी समोसर्या, जीहो नाभिनरीन्द मल्हार;
पावन कीधी वसुंधरा, जीहो पूर्व नवाणुं वार के.
मोहन० ३
पुंडरीक मुनि मुगते गया, जीहो साथे पंच क्रोड,
पुंडरीक गिरिवर जे थयो, जीहो नमो नमो बे कर जोड के.
मोहन० ४
अेणे तीर्थे सिध्या घणा, जीहो साधु अनंती क्रोड;
त्रण भुवनमां जोवतां, जीहो नहीं कोई अेहनी जोड के.
मोहन० ५
मनोवांछित सुख मेळवे, जीहो जपतां अे गिरिराज,
द्रव्य भाव वैरीतणा, जीहो भय जावे सवि भांज के.
मोहन०६
वाचक ‘रामविजय’ कहे, जीहो नमो नमो तीरथ अेह,
शिवमंदिर निश्रेणी छे, जीहो अेहमां नहीं संदेह के.
मोहन०७