वीरवंशना सुविहितवाहक,
शासनना हितकारा,
वंदु गणराया हो गुरुराया,
राजेन्द्रसूरिराया,
जेनी शीतल छाये,
विहरे छे मुनिराया….(१)
परम कृपानिधि, परम दयाळु,
प्राण थकी पण प्यारा,
गच्छाधीश जयघोषसूरिना,
पट्टविभूषक न्यारा,
(श्वासोना शणगार अमारा,
हृदयतणा धबकारा…) वंदु गणराया…(२)
अध्ययन, अध्यापन लेखन,
संपादन वर कीधुं,
आगम दरिये मरजीवा थई,
प्रशमामृत जेणे पीधुं,
(प्रशांतमूर्ति, सौम्यस्वभावी,
समचित्ते वसनारा…) वंदु गणराया…(३)
अष्टशताधिक, श्रमणवृंदने,
नवशत श्रमणी विराजे,
तो पण मान न अंगे स्पर्शे,
जे निरभिमानी बिराजे,
(संघना व्हाला, शुद्धिना क्यारा,
श्रमणोनां रखवाला…) वंदु गणराया…(४)
आर्यागणाधिप पदवी त्यजी तो,
हुआ श्रमण-गच्छराया,
सौम्यशशी सम छाया जेहनी,
बंधाणी जस माया,
(जुग जुग जीवो, सूरिकुलदीवो,
वर्तों जग जयवंता…वंदु गणराया…(५)