विरति की ये ज्योत में,
संयम के संगीत में,
वीरवचन की प्रीत में,
संयम का अभिलाष है…
गिरिराज की गोद में,
गुरुराज सन्मुख में,
करेमि भंते नाद में,
संयम का अभिलाष है…(१)
करूं केसरी शूरवीरतासे
कर्म को दूर हटाने,
भरूं पुण्यसे आतम मेरा
अर्हम पदको पाने,
पाउं संयम वैरागी बनके
शिवपुर में जाने….(२)
पंचमहाव्रत विरति का वरदान, संयम है..
आतम और परमातम
का ये ध्यान, संयम है…
देव भी करते
नतमस्तक प्रणाम, संयम है..
प्रभुवीर के पथ को है
सलाम, संयम है….(३)
रोम-रोम में गूंजे विरतिनाद, संयम है..
पंचम पद में देता है शुभस्थान, संयम है..
पहुंचाए निगोद से निर्वाण, संयम है..
दे सम्यक् शाश्वत मुक्ति
महादान, संयम है….(४)