विरती गुंजन… विरती गुंजन…
विरती गुंजन…
वातो जे संयमनी, सुणी मैं आतमथी,
हैयामां भावो जाग्या, एवुं जीवन जीववुं छे,
मीठी छे ए वाणी, गुरुमाँने मैं माणी,
हर पळ संगाथे हवे, एनी पासे रहेवुं छे,
अंतरथी भीना थईने, मारे कहेवुं छे,
हवे कर्मोनुं करीने भंजन,
(मारे करवुं छे आतम रंजन)
जिनआणानुं आंजी अंजन,
(मारे करवुं छे विरति गुंजन)…१
गुरुकुलवासमां रहेवानुं, पुण्य माहरूं जाग्युं रे,
स्नेहाळ गुरुना खोळामां, रमवाने मन लाग्युं
रे,मुज आतमहीर जगावीने, मळती
गुणवैभवनी क्यारी,ने परमतेजना रश्मिथी,
मळती उर्जा एवी हितकारी,
हवे जल्दी मळे संयम स्पंदन,
(मारे करवुं छे आतम स्पर्शन)
जिन आणानुं आंजी अंजन,
(मारे करवुं छे विरति गुंजन)
हवे कर्मोनुं करीने भंजन,
(मारे करवुं छे आतम रंजन)
जिनआणानुं आंजी अंजन,
(मारे करवुं छे विरति गुंजन)…२
तप त्यागने अवधारी, नैतिकताथी स्वीकारी,
नाणनी सामे नाचवा काजे, रजोहरण मळे
उपकारी,प्रिती परमनी छे प्यारी, भव्यजीवोने
सुखकारी, अर्हमने “अंकित” करवा,
दीक्षा मळे आनंदकारी, मोह-मायाने ममता
छोडी, (संसारनुं करवा विसर्जन) प्रभुआणानुं
आंजी अंजन, (मारे करवुं छे विरति गुंजन)
हवे कर्मोनुं करीने भंजन, (मारे करवुं छे
आतम रंजन)जिनआणानुं आंजी अंजन,
(मारे करवुं छे विरति गुंजन)…३