विरतीनी दुनिया लागे छे प्यारी, आ उपधानमां मारी प्रीत बंधाई…
आस्वाद मळे छे, अहीं साधु जीवननो,
निष्पाप वहे छे, आ समय जीवननो.. मन मस्त रहे छे,
मन स्वस्थ रहे छे, निशदिन हैयामां, शुभ भाव वहे छे..
कणकणमां आनंद रह्यो छलकाई… आ उपधानमां…
सो ने, सो काउस्सग करतां,
वीस नवकारवाळी, मन दईने गणता..
आळस त्यजी ने, जे साधना करता, तेना सहु पापो,
एकसाथे जलतां.. समताने रंग रह्यो आज रंगाई… आ उपधानमां…
मनजी मगन आ परिवार विनवे,
भोरोल तीर्थ ने, प्रभु नेमि कृपाये.. रामचंद्रसूरिश्वर,
गुण-कीर्ति गुरुवर, पामीने अंगअंग, उत्साह लहे छे..
आ दिव्यपळो मां, रह्यो आज भींजाई… आ उपधानमां…