Yatra Navvanu Karie (Hindi)

Yatra Navvanu Karie (Hindi)

यात्रा नव्वाणु करीए…

(राग : मेरुशिखरे नवरावे हो…/ पहेले भवे एक…)

 यात्रा नव्वाणु करीए विमलगिरि, यात्रा नव्वाणु करीए;

पूरव नव्वाणु वार शत्रुंजयगिरि, ऋषभ जिणंद समोसरीए. ॥१॥

 कोटि सहस भव पातिक तूटे, शत्रुंजय समो डग भरीए. ॥२॥

 सात छठ्ठ दोय अठ्ठम तपस्या, करी चढीए गिरिवरीए. ॥३॥

पुंडरीक पद जपीए मन हरखे, अध्यवसाय शुभ धरीए. ॥४॥

पापी अभव्य नजरे न देखे, हिंसक पण उद्धरीए. ॥५॥

 भूमि संथारो ने नारी तणो संग, दूर थकी परिहरीए. ॥६॥

सचित्त परिहारी ने एकल आहारी, गुरु साथे पद चरीए. ॥७॥

पडिक्कमणां दोय विधिशुं करीए, पाप पडल विखरीए. ॥८॥

कळिकाळे ए तीरथ मोटु, प्रवहण जिम भर दरीए. ॥९॥

 उत्तम ए गिरिवर सेवंता, ‘पद्म’ कहे भव तरीए. ॥१०॥

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