दक्षिण भारत का सुंदरतम अतिप्राचीन
अतिशयकारी जैन तीर्थ काम्बदहल्ली-
हरे भरे नारीयलो के असंख्य पेड़ो के जंगलो से घिरा हुआ अतिसुन्दर राज्य कर्नाटक
जहा श्रवणबेलगोला, मुड़बद्री ,कारकल,वेणुर,हुमचा सहित अनेक जैन तीर्थ मौजूद है
इन्ही पवित्र तीर्थो की तरह श्रवणबेलगोला से मात्र 18 किमी की दुरी पर स्थित है अतिप्राचीन काम्बदहल्ली जैन तीर्थ
जिसे दक्षिण भारत का सबसे प्राचीन तीर्थ मंदिर कहा जाता है
श्री विनोद जी मोदी सोलापुर के मार्गदर्शन पर मै भी अपने यात्री दल सहित इस पवित्र काम्बदहल्ली तीर्थ के दर्शनार्थ गया
वहा जाने पर जो अतिशय दर्शन व आत्मीय आनन्द को महसूस किया उसको में आप सबको अवगत कराना चाहूंगा
इतिहास बताता है कि इस तीर्थ की रक्षा और जीर्णोद्धार हेतु हजारो वर्ष पूर्व भी अतिशय सिद्धि धारी आचार्यो ने सार्थक पुरुषार्थ किये जिससे आज भी ये तीर्थ जैन धर्म की प्राचीनता और वैभवता की गौरवगाथा गा रहा है
इस तीर्थ पर दर्शनीय कई दुर्लभ विशेषताए हे जो की पुरे भारत में अन्यत्र कहि भी नही है
इस तीर्थ पर पास पास में ही तीन भव्य जिनालय हे जहा मनोहारी भगवान ऋषभदेव,भगवान नेमिनाथ, भगवान पार्श्वनाथ सहित यक्ष यक्षिणियों की प्रतिमाए विराजित है
कुबेर व लक्ष्मी जी की भी प्रतिमाए विराजित हे
1. मंदिर के मुख्य द्वार के पास ही अंदर की दीवाल वेदी पर सौ महान पुत्रो को जन्म देने वाले और भगवान ऋषभदेव के पिता श्री नाभिराय महाराज की वीतरागी प्रतिमा है जिनके अग्र भाग पर कामधेनु कल्पवृक्ष बना हुआ है
मान्यता है कि नाभिराय महाराज के सामने स्थित पाषण पर नारियल फोड़ कर उस नारियल के रस से नाभिराय जी की प्रतिमा का अभिषेक करने पर सर्व मनोकामना पूर्ण होती है हजारो वर्षो से चली आरही इसी मान्यता के चलते इस तीर्थ को कामनापूर्ति कारक अर्थात काम्बदहल्ली कहते हे
2. इस तीर्थ के एक जिनालय की छत पर फर्श मुखी यक्ष यक्षणी सहित भगवान श्री नेमिनाथ की सुंदर प्रतिमा विराजित हे जिसके चारो और अष्ट दिक्पालों की प्रतिमाए हे
मान्यता है कि इस पूज्य छत के ठीक नीचे उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ कर णमोकार महामन्त्र या नेमि जिनेश्वर का 108 जाप करने से राहु-केतु ग्रह की बाधाए और कालसर्प जैसी ज्योतिषी बाधाए हमेशा के लिये दूर हो जाती है
ऐसा दर्शन पुरे विश्व में अन्यंत्र नही मिलता
3. तीर्थ के प्रांगण में एक मानस्तम्भ हे जिस पर जिनपदसेवक क्षेत्रपाल ब्रह्देव की प्रतिमा है जिनके मस्तक पर जिनेन्द्र प्रभु की प्रतिमा है
ये ब्रह्मदेव क्षेत्रपाल इस तीर्थ क्षेत्र के मुख्य रक्षक देव हे
जिनके पास ही घँटिया टँगी हुई है ये घँटिया हमेशा नही बजती हे मान्यता है कि जब जब भी नगर में कोई संकट या विपदा आने वाली हो तब ही ये घँटिया स्वतः बजती हे
अतः ज्ञात वर्षो में भी जब जब ये घँटिया बजी हे तब तब इस नगर ने कुछ न कुछ विपदा देखी हे
अतः इन घण्टियों का बजना देव का एक आगामि संकेत माना जाता है
अपनी रक्षा सम्बन्धि कामना की पुर्ति हेतु लोग इस क्षेत्रपाल स्तम्भ की परिक्रमा करते हे
4. जैन धर्म की एक ऐतिहासिक घटना है जब गिरनार पर्वत पर पुष्पदन्त और भूतबलि मुनिराज सर्वप्रथम धरसेनाचार्य जी से मिलने जाते हे तब परीक्षा हेतु धरसेनाचार्य जी उन्हें एक त्रुटि वाला मन्त्र देकर सिद्ध करने को कहते हे और उन त्रुटि वाले मन्त्र के फलस्वरूप उन दोनों मुनियो के समक्ष विकृत दैवीया देवियां प्रकट होती है इसी घटना की साक्षी में इस कंम्बदहल्ली तीर्थ जिनालय में उन दो विकृत देवियो की प्रतिमाए भी मौजूद है जिनमे एक देवी अंगभंगी तो दूसरी बहुअंगी हे
इसप्रकार ये तीर्थ अनेकानेक ऐतिहासिक विशेषताओं से भरा हुआ है
हमे सन्तान की कामना ,ज्योतिषी बाधाओं के निवारण व अन्य कामनाओं की पूर्ति हेतु कुदेवो और मिथ्याओ की शरण में जाने से रोककर जिनेन्द्र प्रभु की शरण को देने वाला ये एक अतिप्राचीन अतिशयकारी तीर्थ है
इस पवित्र तीर्थ पर दिया गया एक रुपये का दान भी सर्वोत्तम श्रेष्ठतम जीर्णोद्धार का दान हे
इस तीर्थ के विकास व्यवस्था हेतु वहा पर भट्टारक स्वामी मौजूद है जो यात्रीगणो को इस तीर्थ के समपूर्ण जिनालयों के विस्तृत जानकारी के साथ दर्शन कराते हे
इस महत्ती सुन्दर भव्य तीर्थ कम्बदहल्ली के दर्शन करके अपनी दक्षिण भारत की यात्रा को सार्थक करे