श्रीपाल राजा – मयणासुंदरी कथा

श्रीपाल राजा – मयणासुंदरी कथा

श्रीपाल राजा – मयणासुंदरी कथा

siddhachakra
श्रीपाल राजा – मयणासुंदरी कथा .. १
जैन जगत में नवपद की महिमा अपरंपार है
नवपदजी के गुणों की व्याख्या आराधना… महाराजा श्रीपाल और मयणासुंदरी की कथा जिनशास्त्रों के अनुसार करीबन् इग्यारह लाख वर्ष पूर्व, अनंत उपकारी प्रभु मुनिसुव्रतस्वामीजी के समय में यह तप-उपासना हुई, ऐसा शास्त्र और गुरुदेव फरमाते है।

जिनशासन की परम् उपासक, जिनभाषित कर्म के सिद्धांत पर अटूट् श्रधा रखने वाली सुश्राविका मयणासुंदरी ने अपने सुश्रावक पतिदेव महाराजा श्रीपाल के कोढ़ रोग निवारण हेतु… उज्जैन नगरी में सिद्धचक्रजी की आराधना करके उस भयंकर रोग से मुक्ति दिलायी थी।

इस तप की महिमा का उल्लेख करीबन् २६०० वर्ष पहले वर्तमान जिनशासक देव श्री महावीरस्वामीजी ने… अनंतलब्धिनिधाय गौतमस्वामीजी और श्रेणिक महाराजा को अपनी देशना में कही थी।
पूर्व भवोंभव में किये पुण्यमयी कार्य, जिनवाणी पर अटूट श्रधा, राजा, रंक या त्रियंच जो भी जीवन मिला… उसे न्यायोच्चित्त जिनवाणी
के अनुसार जीने वालो को अवश्य ही उपकारी प्रभु का मार्गदर्शन मिलता है ।

श्रीपाल – मयणासुंदरी … कथा … २

उज्जैन नगर में महाप्रतापी प्रजापाल नामक राजा राज्य कर रहे थे, उनके दोनो रानियों से एक एक पुत्री थी, पहली रानी सोभाग्यसुंदरी की पुत्री का नाम सुरसुन्दरी… जो स्वभाव् से *मिथियात्व को मानने वाली थी, दुसरी रूपसुंदरी की पुत्री का नाम मयणासुंदरी… जो *सम्यक्त्व को धारण किये हुए थी।

एक दिन राज्यसभा में अपनी पुत्रियों की बुद्धिमता की परीक्षा लेते हुए कर्म के सवाल पर राजा ने पुछा… क्या पिता के कर्म से प्राप्त एश्वर्य से आपको सभी खुशियाँ मिल सकती है..?

प्रश्नोत्तर में सुरसुंदरी ने कहा… मुझे मेरे महान् राजा पिता की कृपा से सब कुछ मिल जायगा।

प्रश्नोंत्तर में मयणासुंदरी ने कहा… सभी जीवात्मा अपने पूर्व एवं वर्तमान कर्म के अनुसार ही सुख-दुःख प्राप्त करते है, उसमे न कोई कम कर सकता है न ही बढ़ा सकता है।
? यह सुनकर अभिमान से चूर राजा अति क्रोधित होते हुए कहा… मयणा.. तुझे ये हीरे से जड़े रेशमी वस्त्र, स्वादिस्ट भोजन, रत्न के झुले, दास-दासियाँ सभी कुछ मेरी मेहरबानी की वजह से मिल रहे है।

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