ज्ञानावरणीय कर्म
जिस कर्म के उदय से आत्मा के ज्ञान पर आवरण पड़ जाता है, उसे ज्ञानावरणीय कर्म कहते हैं । केवल पर्दा पड़ता है, आत्मा का ज्ञान नष्ट नहीं होता है … इस कर्म का क्षय करलेने पर आत्मा अनंत ज्ञान को पा लेती है ।
उदाहरण :- जैसे मूर्ति के ऊपर कपडा ड़ाल दिया, तो वह मूर्ति दिखलायी नहीं देती …
एक लड़का दिन रात पढ़ाई करता है, कित्नु उसे कुछ भी याद नहीं होता, सो उसके ज्ञानावरणीय कर्म का उदय है । ज्ञानावरणीय कर्म बंध के कारण :- किसी के पढ़ने में विघ्न करना, पुस्तकें फाड़ देना, गुरु की निंदा करना, ज्ञानी से ईर्या करना, ज्ञान के प्रचार-प्रसार में बाधा डालना इत्यादि से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है
प्रकृतियाँ:- ज्ञानावरणीय कर्म की 5 प्रकृतियाँ होती हैं -श्रेणी :- घातिया कर्म
प्रभाव :- आत्मा के सम्यक ज्ञान पर पर्दा
इसके नाश होने पर उत्त्पन्न गुण :-
अनंत ज्ञान उत्कृष्ठ(ज्यादा से ज्यादा) स्थिति 30 कोड़ा कोड़ी सागर
जघन्य(कम से कम)
स्थिति :- अन्तर्मुहुर्त
ज्ञानवरणीय कर्म के विषय में ~
ज्ञान शब्द संस्कृत की ज्ञा धातु से बना है यानि जानना अथवा जानकारी।
किसी भी वस्तु / पदार्थ की विशेष जानकारी को हम ज्ञान कह सकते हैं
हम सभी की आत्मा में अनंत ज्ञान है यानि हम भी तीर्थंकर की तरह सब कुछ जान सकते हैं । लेकिन ये क्यों नही हो पाता ? क्योंकि हमारी आत्मा के ज्ञान पर ढक्कन ( आवरण ) पड़ा हुआ है जिसे हम ज्ञानवरणीय कर्म कहते हैं ।
हम देखते हैं कोई बुद्धिमान बनता है कोई मुर्ख बनता है । किसी को एक ही बार में याद हो जाता है किसी को १० बार में भी नही हो पाता । इसका कारण है ज्ञानवरणीय कर्म।
ज्ञान के प्रमुख ५ प्रकार हैं। हम technical details में न जाकर main main जानेंगे ।
१. मति ज्ञान – इन्द्रिय और मन की सहायता से होने वाला ज्ञान । यानि हमारी सोचने की शक्ति जैसे। हम सुनते हैं की किसी को अपना पूर्वभव स्मरण हो आया । उसे जातिस्मरण ज्ञान कहते हैं। वो भी मतिज्ञान का भेद है।
२. श्रुत ज्ञान – जो ज्ञान शब्द से सम्बन्ध रखता है । यानि oral या written ज्ञान। हमारे लिखित ग्रंथों को भी श्रुत कहा जाता है ।
३. अवधि ज्ञान – इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना सीमित द्रव्य का ज्ञान होना । यह हमें संभव नही । विशेष साधना से उत्पन्न हो सकता है।
४. मनः पर्यव ज्ञान – किसी के भी मन के भावों को जान सकने वाला ज्ञान। यह ज्ञान दीक्षा लिए बिना संभव नही होता ।
५. केवल ज्ञान – तीनों काल के तीनों लोकों के समस्त पदार्थों के बारे में आसानी से जान सकना। सम्पूर्ण ज्ञानवरणीय कर्म का क्षय होता है तभी केवलज्ञान होता है ।
यह भी जान लेना चाहिए की ज्ञानवरणीय कर्म से आत्मा ढकी हुई है लेकिन चाहे कितना भी गहरा ज्ञानवरणीय कर्म क्यों न हो , आत्मा को हल्का सा ज्ञान तो रहता ही है जो उसे non living चीज़ों से अलग कर सके । यानि आत्मा पर कितना ही कर्म क्यों न हो 0.0001% या ऐसा कुछ ज्ञान तो होगा क्योंकि शुन्य ज्ञान हुआ तो वो non living बन जायेगी
इस कर्म को आँख पर पट्टी की उपमा दी गयी है । जैसे आँख पर कपडे की पट्टी लपेटने से वस्तुओं को देखने में रूकावट पड़ती है , उसी प्रकार इस कर्म से आत्मा को पदार्थों के ज्ञान करने में रूकावट पड़ती है।
ज्ञानवरणीय कर्म बाँधने के प्रमुख 6 कारन हैं
ज्ञानी का विरोध करने से
जिससे सीखा हो या जो सीखा है , उसको छिपाने स
किसी के ज्ञान सीखने में बाधा/ रूकावट डालने से
ज्ञानी से द्वेष करने से या आशात्ना करने से , जिससे सीख हो ऐसेअपने गुरु की अविनय करने से
ज्ञान की आशात्ना से
ज्ञान अथवा ज्ञानी के साथ बहस करना । ज्ञान का दुरूपयोग करने से
ज्ञान की आशातना कैसे कैसे होती है ?
छापे हुए कागज़ पुस्तक जलाने से
पुस्तक अखबार आदि को फेंकने से
ज्ञान साधन पर थूक लगाना बैठना खाना
अक्षर वाली चीज़े पहनना खाना
पेन से कान साफ़ करना
पुस्तक पर पैर रखना
ज्ञान द्रव्य का पैसा किसी और कार्य में लगाणा
हमने ज्ञानवरणीय कर्म के विषय में पढ़ा । मात्र पढ़ना उद्देश्य नही है , थोडा बहुत आचरण में आये तो उत्तमोत्तम होगा ।
हम विचार हम क्या क्या करते हैं क्या नही करते हैं किन चीज़ों से बच सकते हैं और किन चीज़ों को करना भी पड़े तो उत्साह से नही उदासी से करें
बेवजह कागज़ फाड़ना
पुस्तक अथवा नोट पर थूक लगाना
कागज़ पर खाना
पुस्तक को तकिया बनाना
झूठे मुंह कुछ भी कहना या पढ़ना
किताबों को जलाना अखबार पर बैठना
गुरु या अध्यापक का मज़ाक उड़ाना
पटाखों में कागज़ जलाना
धार्मिक अक्षर अधूरा याद करना
गुरु से बहस करना बदनाम करना
लिखे हुए बिस्किट खाना चप्पल पेहेनना वस्त्र पहनना
ज़रूरतमंद की पढाई में मदद न करना
शक्ति होते हुए ज्ञान की ओज विनय बहुमान न करना
शक्ति होते हुए सम्यग् ज्ञान की पुस्तके छपाने से बचना
शास्त्र सुनने ( जैसे कल्पसूत्र या प्रवचन )में विनय न रखना
ज्ञान खाते के पैसों को कहीं और लगाना
पेंसिल सेकान साफ करना बाथरूम में अखबार पढ़ना
अपने गुरु का नाम छिपाना या स्वयं को खुद पढ़ा है ऐसा कहना
अनपढ़ का मज़ाक बनाना
कागज़ पर मल मूत्रकरना या हवा करना
किसी के पढ़ने में विघ्न डालना
क्या कुछ कार्य ऐसे नही जिन्हें हम रोक सकते हैं ?कुछ कार्य ऐसे हैं जिन्हें कम किया जा सकता है या कम से कम अब हम हंसी हंसी कर्म बंधन न करें ,करना पड़ रहा है इस भाव से करें।
चिंतन अवश्य करे