चार गति
गति” नाम-कर्म के उदय से प्राप्त होने वाली जीव की अवस्था/पर्याय को गति कहते हैं !
गतियाँ ४ होती हैं :-
१ – नरकगति
२ – तिर्यंचगति
३ – देवगति, और
४ – मनुष्यगति
१ – नरकगति
नरकगति-नामकर्म के उदय से नरक में जन्म लेना नरकगति कहलाती है !
इस गति के जीवों को नारकी कहते हैं !
नरक ७ होते हैं ! नरक अधोलोक में हैं !
२ – तिर्यंचगति
तिर्यंचगति-नामकर्म के उदय से त्रियंच योनि में जन्म होना तिर्यंचगति कहलाती है ! त्रियंच मध्यलोक/त्रस-नाली में पाये जाते हैं !
३ – देवगति
देवगति-नामकर्म के उदय से देवों में जन्म होना देवगति कहलाती है !
देवता उर्ध्व लोक और मध्यलोक के खर भाग में पाये जाते हैं !
४ – मनुष्यगति
मनुष्यगति-नामकर्म के उदय से मनुष्य योनि में जन्म होना मनुष्यगति कहलाती है ! मनुष्य मध्यलोक में पाये जाते हैं !
किस गति में कोनसी कषाय सबसे ज्यादा होती है :-
नरकगति में – क्रोध कषाय
तिर्यंचगति – मायाचारी
देवगति में – लोभ कषाय, और
मनुष्यगति – मान कषाय सबसे ज्यादा होती है !
किस गति की कितनी आयु(age)
१ – नरकगति – जघन्य आयु १०,००० साल होती है और उत्कृष्ट आयु ३३ सागर होती है !
२ – तिर्यंचगति – जघन्यआयु अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट पर्याय अनुसार होती है !
३ – देवगति – जघन्यआयु १०,००० साल है और उत्कृष्टआयु ३३ सागर होती है !
४ – मनुष्यगति – जघन्य आयु अन्तर्मुहुर्त होती है और उत्कृष्ट ३ पल्य है
किस गति का क्या कारण :-
१ – नरकगति – बहुत ज्यादा आरम्भ(आलोचना पाठ वाला आरम्भ) और बहुत परिग्रह करने से
२ – तिर्यंचगति – मायाचारी से
३ – देवगति – स्वभाव की निर्मलता, बालतप और धर्म करने से
४– मनुष्यगति – थोडा आरम्भ और थोडा परिग्रह करने से
गतियों में जीवों की इंद्रियां :-
नारकी, देव और मनुष्य ५ इन्द्रिय ही होते हैं !
त्रियंचों के पर्याय अनुसार १,२,३,४ और ५
इंद्रियां होती हैं !
सबसे अच्छी गति यूँ तो कोई कौनसी भी नहीं होती है, क्यूंकि हमे तो इन सभी गतियों से मुक्ति पानी है, किन्तु फिर भी “मनुष्यगति” ही सर्वश्रेष्ठ है, क्यूंकि ध्यान, महाव्रत पालन और मोक्ष केवल मनुष्यगति से ही हो सकते हैं !